सफर
अकेली चली थी अकेली चलूंगी। सफर के सहारों न दो साथ मेरा। सहज मिल सके, व नहीं लक्ष मेरा। बहुत दूर मेरी निशा का सवेरा। अगर थक गये हो तो लौट जाओ। गगन के सितारों न दो साथ मेरा। वो हौसला ही क्या जिसे कुछ मुश्किलें पीछे हटा दें। वो आत्मबल ही क्या जो अपनी मंज़िल भुला दे। वो कदम ही क्या जो अपने निशान न छोड़ पायें। मुस्कुराकर चल मुसाफिर , देर न कर तू ज़रा भी। तुझे अपने साया को अपना कारा बनाना है। तुझे इस दुनिया की मोह माया से दूर जाना है। तुझे अपनी मंज़िल ढूंढ पाना है। मुस्कुराकर चल मुसाफिर , देर न कर तू ज़रा भी।